Monday, 15 June 2015

Our beloved Comrade Shri Girdhari Lal Meena retires from services ........


We the AIPEU Gr-C pray for healthy and social life for Shri G L Meena. Shri Meena devoted his full time to public services and remain statue of humanity. All the villagers gathered at Bhadsaura to salutes his working on last working day 31.03.2015

Tuesday, 24 March 2015

Union item raised before the Divisional administration and their ridiculous reply received as a solution..........

प्रिय कामरेड्स,

नए अधीक्षक डाकघर महोदय के कार्यभार ग्रहण करने के बाद एक मात्र यूनियन मीटिंग अभी तक रखी गयी है । जिसमे निम्न प्रकरण उठाये गए और उनके निम्न समाधान प्राप्त हुए है । ऐसा प्रतीत हो रहा है की मंडल प्रशासन प्रकरणो के प्रति बिलकुल सवेंदनशील नही है ।


आशा है आप साथी कर्मचारी उक्त कार्यविधि पर अपने विचार और परामर्श प्रदान करेंगे ताकि आगे की रणनीति इस सन्दर्भ में तय की जा सके ।

धन्यवाद

आपका साथी
अमित कुमार सुथार


Why should we join Union.........................................

एक संघ (यूनियन) की क्या सार्थकता होती है इसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है :-
प्रारम्भ में समाज के उन्थान के साथ ही औध्योगीकरण की शुरुवात हुयी थी जिसमे मॉडर्न टेक्नोलोजी और वृहद् स्तर पर मानव संशाधन की जरुरत पैदा हुयी थी | भारी संख्या में मानव संसाधन के कारण उनके हितो को सुरक्षित रखने की आवश्यकता कालांतर में पड़ी | इसीलिए उनको संगठित रहकर अपनी मांग रखने की जरुरत महसूस हुयी ताकि उनकी वेतन सम्बन्धी, सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकता पूरी हो सके, इसीलिए यूनियन का उद्भव हुआ |
जब भी कोई कर्मचारी यूनियन का सदस्य बनता है तो उसके दिमाग में कुछ आशायें होती है जिसको निम्न प्रकार वर्णित किया जा सकता है :-
आर्थिक परिलाभ :- सबसे बड़ा उद्देश्य किसी भी कर्मचारी संगठन में शामिल होने के पीछे अच्छे वेतन का होता है | समाज में किसी व्यक्ति का स्तर उसकी आर्थिक स्थिति से लगाया जाता है | अतः कोई भी व्यक्ति अच्छी वेतन की उम्मीद अपने किये कार्य के प्रति करता है | लेकिन अकेले व्यक्ति की मांग क्षमता शक्तिशाली प्रबन्धन के समक्ष बहुत क्षीण होती है | अतः सभी कर्मचारियों का संघठन जिससे यूनियन भी कहते है की मांग क्षमता अपने आप में ही बढ़ जाती है और कर्मचारी के आर्थिक हितो के सुरक्षा होती है जिससे प्रबंधन विचार करने पर मजबूर भी होता है | लेकिन यूनियन की भी कुछ सीमाएं होती है यह मांग को जायज स्तर से नियमानुसार ही उठा सकती है | जब संस्था की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है तो कर्मचारी की मांग के अनुसार आर्थिक परिलाभ भी प्राप्त कर सकता है |.
आत्म अभिव्यक्ति का मंच :- पूर्व काल में श्रमिक को दास की तरह समझा जाता था | वह कोई भी आवाज अपने वेतनदाता के समक्ष नही उठा पता था | वे प्रबंधन की दया पर निर्भर थे | वे अपनी दुर्दशा वाले कार्यस्थल, लम्बे कार्यकाल, कम वेतन और असुविधाजनक कार्यस्थल तक के आवाज़ भी नही उठा पाते थे | लेकिन कालांतर में ऐसा यूनियन के उद्भव से नजरअंदाज करना प्रबंधन के द्वारा संभव नही हो पाया | कर्मचारियों को आत्म अभिव्यक्ति का मंच भी मिला | यूनियन ने एक रचनातन्त्र विकसित किया जिससे कर्मचारीयों की आवाज़ उठाई जा सके | अतः यूनियन से कर्मचारियों द्वारा तैयार किया आत्म अभिव्यक्ति का मंच श्रीमिको को मिलता है |
स्वेच्छाचारी निर्णय पर रोकथाम :- यूनियन प्रबंधन की स्वेच्छाचारी निर्णय प्रवृति पर भी रोक लगाती है | हर कर्मचारी एक न्यायोचित व्यव्हार प्रबंधन से उपलब्ध नियमो के अनुसार होना आशा करता है | यूनियन यह सुनिश्चित करती है की प्रबंधन उन्ही नियमो के तहत काम कर रहा है या नही | साथ ही वह किसी तरह का भेदभाव पूर्ण रवैया तो न रखे हुए है और सही व उपयुक्त दिशा में काम भी कर रहा है |
सुरक्षा :- जब भी कोई कर्मचारी यूनियन ज्वाइन करता है तो  वह आशा करता है की यूनियन जरुरत के समय उसके साथ खड़ी रहेगी | यूनियन कर्मचारी के विभिन्न भत्ते जेसे की सामाजिक सुरक्षा, समयोपरी श्रमिक भुगतान, बिमा, मातृत्व परिलाभ नियमो अनुसार मिल सके को भी सुनिश्चित करती है | कर्मचारी यूनियन के साथ मानसिक और शारीरिक रूप से सुरक्षित महसूस करता है |
कर्मचारी प्रबंधन सम्बन्ध :- एक कर्मचारी की सीधे उच्चतम प्रबंधन तक पहुंच संभव नही होती है | यूनियन एक तंत्र उपलब्ध करवाती है जिससे की एक सुचना का आदान प्रदान कर्मचारी और प्रबंधन के बीच हो सके तथा विभिन्न मंचो से अपनी आवाज़ उच्चतम प्रबंधन को पहुंचा सके |
समावेश अनुभूति :- हर कर्मचारी की आधारभूत इच्छा होती है कि वह अपने कार्यकाल में संस्था से जुड़ा हुआ महसूस करे और उसकी आवाज़ भी संस्था की निर्णय प्रणाली में सम्मिलित हो सके जिसको श्रमिक समावेश भी कहते है और यूनियन के द्वारा ही वह अपनी आवाज़ प्रबंधन तक सही निर्णय लेने के लिए पंहुचा सकता है और प्रबंधन को सोचने पर मजबूर कर सकता है  |
अपनापन अनुभूति:- जब कोई कर्मचारी यूनियन ज्वाइन करता है तो वह अन्य कर्मचारियों की संघठन में उपस्थिति की वजह से अपनापन महसूस करता है | वह अपने आप को अलग थलग नही पाता है | साथ ही अनुभव करता है की बुरे दौर में उसके साथ कर्मचारी संगठन खड़ा है |

इन सब तथ्यों के बावजूद यूनियन और प्रबंधन दोनों को सामंजस्य के साथ चलना होता है ताकि संस्था के दीर्घ कालिक उद्देश्य भी प्राप्त किये जा सके | लेकिन एक कर्मचारी के रूप में हमारा कर्त्तव्य एक शक्तिशाली यूनियन बनाने का भी होता है ताकि कर्मचारी हित के लिए प्रबंधन में बैठे कुछ नकारात्मक तथा स्वार्थी तत्व “Divide and Rule”  का पालन न कर सके | चूँकि हर एक वेतनदाता चाहता है की कम दाम में अधिक से अधिक काम अधीन श्रमिक से ले सके जो की आगे जाकर शोषण की प्रवृति भी यदा कदा ले लेता है |

साथियों आशा है आप चित्तौड़गढ़ मण्डल को अपने कार्यक्षमता से एक स्वस्थ और आकर्षक कार्यस्थल बनायेंगे तथा सभी कर्मचारियों के हित लेकर साथ चलेंगे तथा समय समय पर अपना हाथ एक दुसरे की मदद के लिए बढ़ाते रहेंगे |

आप ही का साथी

                                               

                                                    अमित कुमार सुथार

                                                       मंडल सचिव